बचपन में
किस्से सुनते थे राजा रानी के
हम भी तो किरदार हो गए
उसी कहानी के।
समझ नहीं पाए
यह तो बस किस्सागोई थी
रात-रात हम जगे
हमारी किस्मत सोई थी
सभी कथानक झूठे निकले
दादी नानी के।
राजमुकुट ऊपर
अंगरखा रंग बिरंगा था,
सहसा नीचे नजर पड़ी तो
राजा नंगा था
नए नए अब अर्थ खुले
उस कथा पुरानी के।
राजमहल से पहुँचे
संसद के गलियारों में
फर्क नहीं लगता
जयकारों झूठे नारों में,
भुगतें हमीं खामियाजे
सबकी नादानी के।
हमीं पीढ़ियों से राजा को
ढोते आए हैं
पायदान तो कभी सीढ़ियाँ
होते आए हैं,
बनते रहे शिकार सदा
सत्ता मनमानी के।